खाद Manure
खाद शब्द संस्कृत भाषा के खाद्य शब्द से लिया गया हैं। जिसका अर्थ भोजन होता है।
परिभाषा:-
फसल तथा पशुओ के सहउत्पाद जैसे गोबर, मूत्र, फसलों के अवशेष आदि का उपयुक्त नरमी तथा तापमान पर अपघटन से प्राप्त किए गए पदार्थ को खाद कहा जाता है।
खाद कार्बनिक पदार्थ होते है। जैसे-F.Y.M कम्पोस्ट, हरी खाद आदि।
खाद के प्रयोग से होने वाले लाभ :-
मृदा कि भौतिक, जैविक तथा रसायनिक दशा में सुधार होता है।
खादो का उपयोग करने से मृदा में रंध्रावकाशो की सख्या एव जलधारण क्षमता बढ जाती है।
- मृदा घनत्व – मृदा मे खादों का उपयोग करने से स्थूल घनत्व कम हो जाता हैं।
- मृदा तापमान – खादों का उपयोग करने से गर्मियों के दिन मे मृदा तापमान नियत्रित रहता है।
- जैविक दशा – मृदा में खादों का उपयोग करने से सूक्ष्मजीवों की कियाशीलता बढ़ जाती हैं।
- खादों का उपयोग क्षारीय मृदाओ के सुधार मे किया जाता है।
- खादों का उपयोग मृदा की उर्वरा शक्ति बढा देता है।
- यह पौधो को समी आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती है।
कार्बनिक खादों का वर्गीकरण :-
यह मुख्यत.दो प्रकार की होती है।
- स्थूल कार्बनिक खाद
- सान्द्रित कार्बनिक खाद
गोबर की खाद FYM Farm Yard manure:-
- सामग्री- गोबर, मूत्र, लीटर
- संशोधित गड्ढा विधि :- गढ़्ढे का आकार 3X2X1,1मीटर
- ट्रेंच विधि :- Dr C.N आचार्य (1939), आधुनिक विधि
- ढेर लगाकर – खराब विधि
- FYM को बनाने की सबसे उपयुक्त विधि ट्रेच विधि को माना जाता है।
- सडी हुई गोबर की खाद में N.P.K की मात्रा क्रमशः 0.5%, 0.25% 0.5% है।
कम्पोस्ट बनाने की विधियाँ :-
- इंदोर विधि (1924-1931):-
इस विधि की खोज अलबर्ट हॉवर्ड एवं यशवन्त (YD.वार्ड ) नामक वैज्ञानिक ने इन्सीटयूट ऑफप्लाण्ट न्यूट्रिशन इन्दौर (म. प्र.) में की।
इस विधि मे वायुजीवी विच्छेदन होता है।
- इसमे आरम्भक के रूप में गोबर का प्रयोग किया जाता है।
- इस विधि मे तापमान अधिक होता है।
- यह फार्म कम्पोस्टिग की विधि है।
2. बैंगलोर विधि (1939) :-
- इस विधि की खोज सी एन आचार्य नामक वैज्ञानिक ने इन्डियन इन्सिटिटयूट ऑफ साइन्स बैंगलोर में की।
- इस विधि मे अवायवीय विच्छेदन होता है।
- इस विधि में तापमान कम होता है।
- यह विधि शहर मे कम्पोस्ट बनाने की सबसे उपयुक्त विधि मानी जाती है।
- यह शहरी कम्पोस्ट की विधि है।
3. एडको (ADCO) विधि (1921):-
- इस विधि में (ADCO) पाउडर का उपयोग किया जाता है।
- इस विधि की खोज हर्चिसन और रिचर्ड ने इंगलैण्ड मे की थी।
- यह कम्पोस्ट बनाने की प्रथम विधि है।
4. एक्टीवेंडिस कम्पोस्ट विधि (1922):-
- इस विधि का आविष्कार फाउलर एवं रिगे ने किया। इसमे कचरे को सडाने से पहले गर्म किया जाता है।
5. नेडेप विधि:-
- इस विधि की खोज महाराष्ट्र के किसान नेडेप काका / नारायण देवराव पंडरीपान्डे ने की थी।
Note :-
- एजेटोबैक्टर की सहायता से बनी कम्पोस्ट एजोकम्पोस्ट कहलाती हैं।
- SSP (सुपर फॉस्फेट) की सहायता से बनी कम्पोस्ट सुपर कम्पोस्ट कहलाती है।
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