उर्वरक (Fertilizer)
- विश्व मे सर्वप्रथण सिगल सुपर फॉस्फेट [SSP] नामक उर्वरक को लेविस तथा लीबिग (1843) नामक वैज्ञानिक ने इंग्लैंड में बनाया।
- यह सल्पयूरिक अम्ल तथा राख के मिश्रण से बनाया गया।
- भारत मे सर्वप्रथम सिंगल सुपर फॉस्फेट का निर्माण 1905 मे सल्पयूरिक अम्ल तथा रॉक फॉस्फेट के मिश्रण से बनाया गया।
- SSP विश्व तथा भारत में सबसे पहले बनने वाला उर्वरक।
- रॉक फॉस्फेट का कारखाना उदयपुर के झामर कोटडा में स्थित है।
उर्वरकों का वर्गीकरण –
नाइट्रोजन युक्त उर्वरक :-
- नाइट्रेट उर्वरक
- अमोनिकल उर्वरक
- नाइट्रेट व अमोनिकल उर्वरक
- एमाइड उर्वरक
फॉस्फोरस युक्त उर्वरक :-
- जल में घुलनशील उर्वरक
- साइट्रिक अम्ल मे घुलनशील
- जल तथा साइट्रिक अम्ल मे अघुलनशील
पोटाश युक्त उर्वरक :-
- क्लोराइड युक्त
- क्लोराइड मुक्त
नाइट्रोजन युक्त उर्वरक :-
- इस उर्वरक में नाइट्रोजन नाइट्रेट के रूप में पाई जाती है।
- पौधों मुख्यत नाइट्रोजन नाइट्रेट(No3) के रूप में लेता है
- अपवाद- धान, गन्ना, आलू आदि फसल नाइट्रोजन – अमोनियम (Nh4) के रूप मे लेते है।
- इसलिए इन पौधों को अमीनोफिलिक पौधे कहा जाता है।
- उसकी प्रकृती क्षारीय होती है। इसलिए इनका प्रयोग उम्लीय मृदा में किया जाता है।
- नाइट्रेट उर्वरक अधिक चालक होने के कारण इसका उपयोग पौधों पर्णीय छिड़काव के रूप मे उपयोग किया जाता है।
- इन उर्वरको का लीचिग (निक्षालन) द्वारा अधिक नुकसान होता है।
- सोडियम नाइट्रेट – (NaNo3)- 16% (चिली साल्टपीटर)
- केल्शियम नाइट्रेट – (CaNo3)-15.5%- 19 1% Ca
- पोटेशियम नाइट्रेट – (Kno3)-13% (साल्ट पीटर)
- इन उर्वरकों में नाइट्रोजन अमोनियम के रूप में पाई जाती है। इन उर्वरकों का उपयोग मुख्यतः जलमगन क्षेत्र में किया जाता है। जैसे धान के खेत में
- इन उर्वरको की अम्लीय प्रकृति होती है। इसलिए इन उर्वरकों को क्षारीय मृदाओ मे उपयोग किया जाता है।
- धान के खेत मे अमोनिकल उर्वरक को अपचय क्षेत्र में देना चाहीए ताकी नाइट्रोजन की हानि कम हो।
- अमोनियम फोस्फेट
- अमोनियम क्लोराइड
- अमोनियम सल्फेट
- एनहाड्रस अमोनिया (NH3,निर्जल अमोनिया / तरल अमोनिया)
- इन उर्वरकों में नाइट्रोजन नाइट्रेट तथा अमोनियम के रूप मे पाई जाती है।
- अमोनियम नाइट्रेट – 33% (N)
- CAN — 25% (N) 4.5% (Mg) 8% (Cl)
- ASN (अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट)) – 26% (N) 15% (S)
- यह उर्वरक विस्फोटक पदार्थ बनाने के रूप में उपयोग किया जाता है।
- इस उर्वरक में उपस्थित नाइट्रोजन का 50 % माग अमोनियम तथा 50 % नाइट्रेट के रूप में पाया जाता है
- यह उर्वरक सर्वाधिक आर्द्रता ग्राही है।
- आद्रता ग्राहिता का क्रम – अमोनियम नाइट्रेट>यूरिया >अमोनियम सल्फेट
- इस उर्वरक खाद को (किसान खाद /सोना खाद) नाइट्रोचाक कहा जाता है।
- यह उर्वरक उदासीन प्रकृति का होता है।
- नाइट्रो-चाक अमोनियम नाइट्रेट + Caco2, (चूना) के मिश्रण से बनता है।
- इन उर्वरकों में नाइट्रोजन एमाइड के रूप में पाई जाती है।
- यूरिया (NH3CONH2) – 46%N, 20%C
- कैल्शियम सायनामाइड (Ca(Cn)2) – 21%N
- यूरिया अम्लीय प्राकृती तथा केल्शियम सायना माइड क्षारीय प्रवृती का होता है।
- यूरिया को मृदा में डालने पर सर्वप्रथम यूरिएज एन्जाइम की उपस्थिति में यूरिया का जल अपघटन होता है। जिसके फलस्वरूप अमोनियम कार्बोनेट नामक अस्थाई उत्पाद बनता है।
- अमोनियम से नाइट्रेट मे बदलने की क्रिया नाइट्रीफिकेशन कहा जाता है।
- नाइट्रेट से N2O गैस मे वायु की अनुपस्थिती बदलने की क्रिया डीनाइट्रीफिकेशन कहा जाता है।
- धान के खेत में सर्वाधिक नाइट्रोजन की हानि डिनाइट्रीफिकेशन प्रक्रिया के दौरान होती है।
- डिनाइट्रीफिकेशन मे नाइट्रोजन की हानि N2O गैस के रूप मे होता है।
- धान के खेत से मिथेन गैस सर्वाधिक निकलती है।
- नाइट्रोसोमोनास तथा नाइट्रोबेक्टर को नाइट्रोबेक्टरीया के नाम से भी जाना जाता है।
- यूरिया एक अम्लीय प्रकृति का उर्वरक है जिसका उपयोग मुख्यत क्षारीय मृदाओं में किया जाता है।
- यूरिया :- यूरिया की सर्वप्रथम खोज H.M Roulle(1773) ने की थी।
- यूरिया का सर्वप्रथम प्रयोगशाला मे संश्लेषण व्होलर नामक वैज्ञानिक ने किया (1828) ।
- अमोनिया को बनाने की सबसे उपयुक्त विधि हेबर विधि मानी जाती है।
बायुरेट
- बायूरेट यूरिया बनाने के दौरान अधिक तापमान के कारण >150°C
- बायूरेट एक हानिकारक रासायनिक पदार्थ है जो कि फसलों के लिए हानिकारक होता है।
- FCO (उर्वरक नियंत्रण आयोग) -(1957) के अनुसार यूरिया में बायूरेट की मात्रा मृदा के लिए 15 % से अधिक नहीं होनाचाहिए।
- FCO के अनुसार यूरिया के पर्णीय छिड़काव के लिए बायूरेट की मात्रा 025 % से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- पर्णीय छिडकाव के लिए यूरिया की 2 % सान्द्रता का प्रयोग किया जाता है।
- इस उर्वरक का निर्माण भारत में नही किया जाता है।
- इस उर्वरक के उपयोग से बीजो का अकुरण प्रभावित होता है।
- इस उर्वरक का सामान्यत उपयोग बुवाई के 4 सप्ताह पहले किया जाता है।
- क्षारीय प्रकृती का उर्वरक है।
- इन उर्वरको में फॉस्फोरस फॉस्फेट के रूप में पाई जाती हैं
- फॉस्फोरस युक्त उर्वरको को मुख्यतः बुवाई से पहले या बुआई के समय दिया जाता है, क्योकि यह मृदा मे अचालक होते है।
- फॉस्फोरस एक मात्र ऐसा उर्वरक तत्व है जो की पौधो मे चालक तथा मृदा मे अचालक होता है ।
- यह मुख्यत’ मोरक्को में पाया जात्ता है।
- फॉस्फोरस युक्त उर्वरक बनाने का प्राथमिक स्त्रोत – रॉक फॉस्फेट
- फॉस्फोरस का मृदा में मुख्य स्त्रोत – एपेटाइट
साइट्रिक अम्ल में घुलनशील फॉस्फोरस युक्त उर्वरक –
- डाइकेल्शियम फोस्फेट
- थोमस / बेसिक स्लेग
- इसे अम्लीय मृदाओं में उपयोग करते है।
जल तथा साइट्रिक अम्ल में अघुलनशील फॉस्फोरस युक्त उर्वरक :-
- रॉक फॉस्फेट – 20 से 30%
- स्टीम्ड बोनमील – 20 से 30%
- रॉक फॉस्फेट को मुख्यतः: अधिक अम्लीय तथा कार्बनिक मृदाओ में उपयोग किया जाता है।
पोटाशिक उर्वरक
- पोटेशियम सल्फेट (सल्फेट ऑफ पोटाश)
- पोटेशियम नाइट्रेट(नाइट्रेट ऑफ पोटाश)
- पोटाश युक्त उर्वरको को बुवाई के पहले या बुवाई के समय दिया जाता है।
- उर्वरक का उपयोग स्टार्च वाली फसलो मे (जैसे आलु, गन्ना, एवं तम्बाकु ) में नहीं किया जाता है। क्योंकि यह इन फसलो की गुणवत्ता कम कर देते है, तथा तम्बाकु की पत्तियों की दहन क्षमता कम कर देना।
- स्टार्च वाली फसल व तम्बाकू की फसल में K2SO4 व KNO3 उर्वरक का उपयोग किया जाता है।
- पोटाश का कारखाना जमशेदपुर बिहार में है।
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