मृदा क्षरण या मृदा अपरदन SOIL EROSION
प्राकृतिक मृदा क्षरण
1. जल द्वारा मृदा क्षरण :-
- वर्षा की प्रारभिक बूदो द्वारा मृदा कणों का अपने रथान से छिटकना।
- यह जल द्वारा क्षरण की प्रथम अवस्था है।
परतदार क्षरण (शीट इरोजन) –
- खेत की पतली उपजाऊ परत का बह जाना।
- किसानो द्वारा इसका अनुमान लगाना मुश्किल होता है. इसलिए इसे अदृश्य क्षरण भी कहते है।
क्षुद्र नालिका क्षरण (रिल इरोजन) –
- खेत में उगलियो के समान पतली नालियाँ बनना ।
- ये नालियाँ सामान्य भूपरिष्करण क्रियाओं से समतल हो जाती है।
अवनालिका क्षरण (गली इरोजन) –
- ये नालियाँ सामान्य भू परिष्करण द्वारा समतल नहीं की जा सकती है।
खडड क्षरण (रिवाइन इरोजन) –
- ये क्षरण मुख्यत पहाडी इलाको मे पाया जाता है।
मूस्खलन –
- जल + मृदा – बहुत हानिकारक
- नदियों के किनारे पाया जाता है।
2. वायु द्वारा –
- 01 MM से कम आकार के कणो का वायु द्वारा क्षरण।
- इस अवस्था में मृदा का कण सैकडो किलोमीटर तक विस्थापित हो जाता है।
उच्छलन (साल्टेशन)
- 01- 05 MM के आकार के कणों का वायु द्वारा क्षरण।
- कुल वायुक्षरण का 50-70 % इसी अवस्था मे होता है।
- यह वास्तव में मृदा कणो के उछल कूद की एक श्रखला है। सर्वाधिक वायुक्षरण इसी अवस्था में होता है।
सतह विसर्पण (सरफेस क्रीपिंग)-
- 0.5 mm से बडे कणों का मृदा पर वायु के प्रभाव के कारण घसीट कर चलना।
- कुल वायुक्षरण का 5 से 25 % इसी अवस्था मे होता है।
3. वेव क्षरण –
- जल एवं वायु द्वारा सयुक्त रूप से किया जाने वाला मृदा क्षरण।
- उदा – नहरो के किनारे वाले क्षेत्रों मे पाया जाता है।
कृत्रिम क्षरण/मानव द्वारा/ त्वरित क्षरण –
मृदा क्षरण को प्रभावित करने वाले कारक –
- मृदा की किस्म
- वर्षा की मात्रा एवं गति
- स्थलाकृति अथवा ढलान का कोण
- मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा
- वनस्पति की उपस्थिति
मृदा संरक्षण – मृदा क्षरण को कम करना ही मृदा संरक्षण कहलाता है।
- विंडब्रेक – खेत की उत्तर – पश्चिम दिशा में वायुरोघी वृक्ष लगाना।
- शेल्टर बेल्ट – निर्जीव पदार्थ की दीवार बाढ अथवा वृक्षों की कतारो के साथ झाडिया लगाना।
जलद्वारा होने वाले क्षरण को कम करने के उपाय :-
- पॉलीथीन मल्च – गर्मी में – सफेद पॉलीथीन सर्दी मे – काली पॉलीथीन
- स्ट्रोमल्च (चारा) – गेहू, जौ का भूसा उपयोग करते है।
- लकड़ी मल्च – कपास के तने का उपयोग किया जाता है ।
- वर्टीकल मल्च – इसमे फसलों के अवशेष तथा मिट्टी को उपयोग करते है। यह काली मृदा में उपयोग मे की जाती है इसका प्रयोग साधारणतः कॉफी में किया जाता है
- डस्टमल्च – मृदा की ऊपरी 5 cm परत को भुरभुरी बना दिया जाता है।
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