सिंचाई की परिभाषा, सिंचाई के स्रोत एवं सिंचाई की परिभाषा ( Definition of irrigation, sources of irrigation and definition of irrigation)

सिंचाई की परिभाषा, सिंचाई के स्रोत एवं सिंचाई की परिभाषा ( Definition of irrigation, sources of irrigation and definition of irrigation)

सिंचाई की परिभाषा Definition of irrigation
:- 
पौधे को कृत्रिम रूप से जल देने की क्रिया को सिंचाई कहा जाता है।
 
सिंचाई के महत्व :-  
पौधो के जीवदृव्य में लगभग 85 – 90 % जल पाया जाता है।
यह प्रकाश संश्लेषण तथा पौषक तत्वों के लिए आवश्यक होता है।
यह लू तथा सर्दियो में पाले से बचाने मे सहायक होता है। जैसे – फव्वारा विधि के द्वारा
 

सिंचाई के स्त्रोत :-

1. नहर :-
भारत मे मुख्यतः: नहरो द्वारा सिंचाई की जाती है।
भारत मे सर्वाधिक नहरों द्वारा सिंचाई पंजाब तथा हरियाणा में की जाती है।
 
2. कुए तथा नलकूप :- राजस्थान में मुख्यतः कुए तथा नलकूपो द्वारा सिचाई की जाती है।
 
3. तालाब :- भारत मे तालाबों द्वारा सिचाई तमिलनाडु में की जाती है।
 

irrigation सिंचाई की विधियाँ :-

सतही सिंचाई की विधियाँ :- यह विधि मुख्यतः भारत मे अपनाई जाती है। यह विधि निम्न प्रकार की होती है।
 
a. प्रवाह विधि :- प्रवाह विधि द्वारा घान तथा जूट की फसलों में सिंचाई की जाती है। इस विधि में अधिक जल का नुकसान होता है।
b. क्यारी विधि :- इस विधि को चौकाकार विधि के नाम से भी जाना जाता है। इस विधि द्वारा मूंगफली, गेंहू, चना, जौ आदि फसलों में की जाती है।
 
c. वलय विधि :- इस विधि को अंगूठी विधि के नाम से भी जाना जाता है। यह विधि फलवृक्षो के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
 
d. बूंद बूंद /वलय /द्रोण (थाला विधि) :-इस विधि में रोगो का स्थानांतरण एक पौधे से दूसरे पौधे में नहीं होता है।
 
 
e. थाला विधि :- इस विधि को द्रोण विधि के नाम से भी जाना जाता है। यह विधि फल वृक्षों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस विधि में एक पौधे से दूसरे पौधे मे रोगों का स्थान्तरण होता है।
 
f. कूंड  विधि :- इस विधि में फसलो को मेड पर लगाया जाता है, तथा सिचाई कूंड में की जाती है। इस विधि मे मुख्यत:- मूली, गाजर, शलजम, आलू, गन्‍ना आदि फसलो की सिचाई की जाती है।
2. अधोसतही सिंचाई की विधियाँ :- इस विधि द्वारा भारत मे सिचाई नहीं की जाती है।
 
3. वायवीय सिंचाई :-
 
a. फव्वारा विधि :-
इस विधि मे भारत में इजराइल से लाया गया।
भारत में सर्वाधिक फव्वारा विधि द्वारा सिंचाई – हरियाणा राजस्थान में सर्वाधिक फव्वारा विधि द्वारा सिचाई झुझनु में की जाती है।
जल की बचत – 25 – 50 %
जल उपयोग दक्षता – 50-60 %
इसमे पाइप की लम्बाई 6 मीटर होती है। इस विधि मे दबाव 25 से 45 किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी होता है।
 
फव्वारा विधि के लाभ  :- इस विधि का उपयोग रेतीली मृदा तथा असमतल भूमि पर किया जाता है।
इस विधि द्वारा पौधे को पाले तथा लू से बचाया जा सकता है।
रेन गन:- रेनगन फव्वारा विधि की नई तकनीक है।
LEPA – फव्वारा विधि से सम्बंधित है।
 
फव्वारा विधि की हानियाँ – इस विधि का उपयोग वायु की तेज गति वाले क्षेत्रों में नही किया जा सकता है (13-15 की० मी० प्रति हेक्टेयर )से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इस विधि द्वारा पौधों में रोगो का स्थानान्तरण होता है। इस विधि का दाब 0.5 से 10 किलोग्राम प्रति सेंटीमीटर स्क्वायर (बार) होता है। (>2,.5 बार से अधिक)
 
हानि – इसका उपयोग पुष्पन के समय करने से पौधे की पुष्पन प्रक्रिया प्रभावित होती है।
 
सूक्ष्म सिंचाई  (Micro irrigation) बूंद बूंद विधि :-
खोजकर्ता – सिम्चा ब्लास इस विधि को ड्रिप विधि अथवा ट्रिकल विधि के नाम से भी जाना जाता है। इस विधि को भारत में इजराइल से लाया गया भारत मे सर्वाधिक बूद बूंद विधि द्वारा सिंचाई महाराष्ट्र में की जाती है।
जल की बचत – 50 से 70 %
जल उपयोग दक्षता 80-90 %
इस विधि का उपयोग मुख्यतः फलवृक्षों मे किया जाता है।
इस विधि मे दबाव 15 से 25 (03-2) किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी होता है।
इस विधि द्वारा फर्टीगेशन आसानी से किया जा सकता है।
इस विधि में लवणीय तथा क्षारीय जल का उपयोग सिचाई के लिए किया जा सकता है।
 
क्लोगिंग :- जल मे अधिक लवण तथा शैवाल होने के कारण इमीटर /ड्रिपर बंद हो जाता है। जिससे जल का आना बंद तथा कम हो जाता है।
लवणों की क्लोगिग के लिए H2SO4 या HCL (मुख्यत)
शैवालों की क्लोगिग के लिए – ब्लीचिग पाऊडर
ईमीटर या ड्रॉपर बूंद बूद विधि से सम्बंधित है।
इस विधि से सिचाई करने से खरपतवारो का प्रकोप कम होता है।

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