Rice/ Paddy crop classification

Rice

 Rice/ Paddy

  • वानस्पतिक नाम                         –               ओराइजा सेटाइवा
  • कुल                                           –                ग्रेमिनी
  •  उत्पति स्थान                              –                 दक्षिणी पूर्वी एशिया
  • गुणसुत्र 2n                                  –                 24
  • पुष्पक्रम                                      -.                ऑपन पेन्निकल।
  • फल                                            – .               केरियोप्सिस
  • तना                                            –                  Culm
  • परागण                                        –                  स्वपरागण
  •  अकुरण                                        –                 हाइपोजियल
  • प्रोटीन                                           –                  6-7%
  • वसा                                              –                  2.5%
  • ऐरेन्काइमा ऊत्तक तने व पत्तियों मे पाया जाता है, जिसके कारण 02 पत्तियों से लेता है कुल 24 प्रजाती जिनमे  से 2 प्रजाति कृषि के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
  1. ओराइजा सेटाइवा
  2. ओराइजा ग्लेबेरिमा

 ओराइजा इण्डिका             – भारत

ओराइजा जेपोनिका          – जापान

ओराइजा जावानिका        – इण्डोनेशिया (यह जंगली प्रजाति हैं।)

जलवायु – मृदा

  • C3 पौधा, SDP  पौधा, खरीफ का पौधा
  • सामान्य तापमान                   -21-37°C
  • अंकुरण के लिए तापमान         -30- 35°C
  • पुष्पन Carin) के लिए तापमान -26.5-29.5
  • उपयुक्त मृदा ph                     -4-6
  • मृदा -काली मृदा उपयुक्त मानी जाती है।

 बीजदर और बीज उपचार –

  • सामान्य बीजदर (ब्रोड कास्टिंग / छिड़काव विधि) -100 kg/h
  • सीडलिग के लिए (पौधारोपण) -40- 50 kg/h
  • सीधी बुवाई के लिए बीजदर -80-100 kg/h
  • बीज की गहराई -2-3 cm
  • धान की गहरी जुताई करने से कल्ले (टीलर) का निर्माण नही होता है।
  • पौघारोपण                – 2-3 पौधे / हिल
  • फसल अंतरण R x P   – 20 x 10cm
  • जैव उर्वरक                – एजोला, B.G.A
  • एजेटोबैक्टर का उपयोग बिना पानी वाले घान के खेत मे किया जाता है।

पडलिंग-

  • खेत मे बार बार जुताई करके मृदा को लेहयुक्त (गार युक्‍त) बनाने की क्रिया को पडलिग कहा जाता हैं।
पडलिंग के उद्धेश्य-

पानी के नुकसान को कम करना परकोलेशन के द्वारा होने वाले नुकसान को कम करना पडलिंग करने से B.d.बढ जाती हैं।

बुआई का समय –

बुआई का समय      कटाई का समय             क्षेत्र

अस                      मई – जून                 सितम्बर – अक्टूबर ,/ असम
अमन                   जून – जुलाई              नवम्बर – दिसम्बर /सम्पूर्ण भारत
बोरो                     नवम्बर – दिसम्बर      मार्च – अप्रेल / पश्चिम बंगाल (W.B)

नर्सरी तैयार करना –

धान के एक हैक्टेयर में रोपाई के लिए 1/10 hac (1000वर्ग मीटर) की नर्सरी तैयार की जाती है।

खेत : नर्सरी का अनुपात – 10 : 1

नर्सरी बनाने की विधि-

  1. गीली नर्सरी विधि – 20 – 30 दिन बाद पौधा तैयार हो जाता है।
  2. सूखी नर्सरी विधि – 25 – 30 दिन बाद पौधा तैयार हो जाता है।
डेपोग विधि –
  • IRRI  अंतराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान मनीला, फिलीपींस द्वारा विकसित।
  • यह नर्सरी तैयार करने की विधि है।
  • इसमे सबसे कम क्षेत्रफल की आवश्यकता होती हैं।

क्षेत्रफल -25 – 30 M2

पौधो का स्थानानतरण – 11-13दिन बाद

बीजदर –        3kg/Miter square ,90 kg/hac

SRI (श्री) विधि —

  • इसकी खोज मेडागास्कर मे हुई।
  • खोजकर्ता – हेनरी डी लाऊलीन
  • क्षेत्रफल -1%
  • नर्सरी से पौधो का स्थानान्तरण -10- 11 दिन बाद

बीजदर   – 6-8 kg/h.

  • इस विधि मे पानी, पोषक तत्व (उर्वरक) और मृदा की बचत होती है।
  • मेट टाइप नर्सरी धान से सम्बन्धित है।
उर्वरक प्रबन्धन –
  • N –  80-120kg/h.
  • P  –    50-60kg/h
  • K –  4Okg/h.
    .
  • आधा N + पूरा P & K -बेसल डॉस नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटेशियम की पुरी  मात्रा बुवाई के समय। मात्रा बुवाई के समय।
  • धान के खेत मे अमोनियम का ऑक्सीकरण नही होता है, क्योकि धान के खेत मे ऑक्सीकरण की अनुपस्थिति होती है।
खरपतवार प्रबन्धन –
  • प्रोपनिल -POE
  •  ब्यूटाक्लोर -PE
  •  धान में जगली धान नकलची खरपतवार होता है।
  • भूरी खाद (ब्राउन मेन्योरिंग) धान से सम्बन्धित है। धान की खड़ी फसल मे (25-35 दिन बाद) ढेचाँ को 2, 4-0 के द्वारा नष्ट करना भूरी खाद कहलाता है।

बुशनिंग या बुश कल्टिवेशन –

  • यह धान से सम्बन्धित है।

उद्देश्य –

  • खरपतवार नियन्त्रण करना।
  • ऑक्सीजन की उपलब्धता बढाना।
  • पौधो की संख्या को नियन्त्रण करना।

पॉवर टिलर –

  • यह एक मशीन है, जिसकी सहायता से खरपतवार नियन्त्रण किया जाता है।
  • रटार वीडर का उपयोग मूँगफली की हार्वेस्टिग मे किया जाता है।
जल प्रबन्धन –

सिचाई की क्रान्तिक अवस्था – पेनिकल इनिशिएशन और बुटिग अवस्था |
धान की फसल की जल उपयोग दक्षता सबसे कम होती है।

  • मिलिंग – 55%
  •  हुलिंग (66%)
  • लेमा -पैलिया को हटाने की क्रिया
  • हुलिग % = चावल का प्रतिशत /धान का प्रतिशत X 100

पैराबॉइलिंग –

  • यह धान से सम्बन्धित हैँ, इसमे विटामिन-B12 का सग्रहण होता है।
  • मीलिंग के दौरान विटामिन-B का नुकसान होता है।

महत्वपूर्ण तथ्य

paddy

1 सुनहरा चावल —

  • खोजकर्ता – इगो पोर्टीकुस
  • इस चावल को विटामिन -A  (- कैरोटीन) से भरपूर किया गया है।
  • विटामिन A  की कमी के कारण होने वाला रोग – जैरोप्थेल्मिया

2 सुपर धान –

खोजकर्ता -G.S.खुश |

3. संकर धान –

  • यह सर्वप्रथम चीन मे बनाया गया। (1970)
  • खोजकर्ता – यूवान लोंगपिग
  • भारतीय खोजकर्ता -E.A .सिद्धिकी
  • इस धान को बनाने के लिए G A अम्ल व CMS तकनीक का उपयोग किया गया।

4. बासमत्ती चावल –

  • इसमे सुगध डाई -एसिटाइल 1 – पायरोलीन के कारण होती है।
  • बासमत्ती चावल का परिक्षण भार सामान्य धान से कम होता है ।

 किस्मे  –

  • 1961 -TN-1
  • 1966 – IR -8-सबसे पहली बौनी किस्म
  • 1968 – जया -भारत की सबसे पहली मध्यम बोनी किस्म – खोजकर्ता – शास्त्री
  • 1994. – APRH -1 भारत की प्रथम संकर किस्म
  • 2010  – PRH -10 बासमती चावल की प्रथम सकर किस्म।

अन्य किसमें –

चम्बल, पूसा बासमती 1, 2

  • लवणीय मृदा के लिए                     – लुणी श्री, try  -1, 4try
  • Fe के प्रति प्रतिरोधी किस्म              – फाल्गुना
  • तना छेदक के प्रति प्रतिरोधक किस्म – IR – 20
  • प्रथम उत्परिवर्तित किस्म                – जगन्नाथ

Paddy रोग –

1) झुलसा (ब्लास्ट ) पायरी कुलेरिया ओराइजी – कवक

  • नेक रोट होता है

2) बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (BLB )- जैन्थोमोनाज ओराइजी – जीवाणु।

  • किलर रोग कहा जाता है।

3).भूरी पत्ति धब्बा (Brown Leaf )- हेल्मिथोस्पोरियम ओराइजी (इस रोग के कारण 1942-43 में अकाल आया था)

  • बंगाल का अकाल (बगाल फेमाइन)

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कीट –

  • YSB (तना छेदक) – यह कीट पत्तियों के शीर्ष पर अण्डे देता है, व्हाइट इयरपेनिकल बन जाता है।
  • नियन्त्रण             – पौधे को रोपाई से पहले उसकी पत्तियों के शीर्ष को तोडा जाता है।
  • Tungro (टुंग्रों)      – यह वायरस के द्वारा होता है।
  • मेनटेक कीट्ट         – यह कीट निमेटोड के द्वारा होता है।
  • गंधीबग                – यह कीट दूधिया अवस्था मे हानि पहुँचाता है।
  • गाल मिज            – इस कीट से ग्रसित पौधे की पत्तियाँ प्याज की पत्तियो के समान हो जाती हैं। सिल्वर शूट, संरचना बन जाती है।

 

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