विशेष उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण classification of crops
नगदी फसलें- ऐसी फसलें जिन्हें सीधे बाजार में बेचकर तुरंत लाभ कमाया जा सकता हैं।
सामान्यतः: इन फसलों का भण्डारण करने में किसान रूचि नहीं रखता हैं। गन्ना, कपास, आलू, तम्बाकू, चाय, कॉफी, रबर, सब्जियाँ, फल, बैबी कॉर्न।
आकस्मिक / ग्राह्म फसल – दो मुख्य मौसमी फसलों के मध्यान्तर में उगायी जाने वाली फसल। उदा. – मूंग, उडद, लाही
यदि किसी कारणवश हमारी मुख्य फसल नष्ट हो जाये एवम् अगली फसल की बुवाई के कुछ समय शेष रह जाये। तो मुख्य फसल के नष्ट होने के कारण फसल की हुई हानि की भरपाई के लिए लघु अवधि वाली फसल को दोनों मुख्य फसलों के बीच लगाते हैं। उदा. – तोरिया
मृदा आरक्षक फसलें- ऐसी फरलें जो मृदा क्षरण को कम करती है मृदा आरक्षक फसलें कहलाती हैं।
इन फसलों का प्रयोग मुख्यतया मृदा क्षरण से ग्रसित क्षेत्रों में किया जा सकता हैं। उदा. – मूंग, उड़द, सोयाबीन, लोबिया
मृदा क्षरण को बढ़ावा देने वाली फसलें – उदा. मक्का, कपास, तम्बाकु, अरहर, अरण्डी
पाश फसल,/फंदा फसल (ट्रेप क्रॉप) –
मुख्य फसल के कीटों को आकर्षित करने हेतू लगायी जाने वाली फसल को ‘ट्रेप क्रॉप” कहा जाता है। उदा. –
(1) कपास के चारों ओर भिण्डी लगाना
(2) चने में अरहर- चने की सुण्डी -हेलिकोवर्पा
(3) पत्तागोभी में सरसों लगाना
(4) टमाटर के साथ गेंदा लगाना
सूचक फसल – ऐसी फसलें जो पानी अथवा पोषक तत्वों की कमी के लक्षणों को अन्य फसलों की तुलना में शीघ्रता से प्रदर्शित करती हैं। सूचक फसलें कहलाती हैं। उदा. मक्का सूरजमुखी
शिकारी/प्रे फसल- ऐसी फसलें जो अपनी अत्यधिक घनी वृद्धि से खरपतवारों की जनसंख्या को कम कर देती है। ये फसलें भौतिक रूप से प्रतियोगिता करके खरपतवारों को पुष्पन, बीज, निर्माण अवस्था तक नहीं जाने देंती है। उदा. – बरसीम
नाभि फसलें- कुछ फसलें किसी स्थान विशेष पर अन्य फसलों की तुलना में अधिक लाभ प्रदान करती हैं। या नाभि फसलें कहलाती है। शहर के निकट सब्जियों की खेती। शुगरमिल के पास गन्नें की खेती।
चिप्स फैक्ट्री – आलू की खेती।
जिनिंग मिल के पास – कपास की खेती।
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