जल निकास Drainage
जल निकास:-
मृदा के सतह तथा अघोसतह से अतिरिक्त जल को कृत्रिम रूप से बाहर निकालने कि क्रिया को जल निकास कहा जाता है।
जल निकास के लाभ :-
- वायु संचार बढ जाता है।
- मृदा में पौषक तत्वों की उपलब्धता बढ जाती है।
- मृदा कि जैविक भौत्तिक तथा रासायनिक दशा में सुधार होता है।
जल भराव से हानियाँ :-
- Cu, Zn कमी की हो जाती है।
- Fe, Mn की विषाक्ता बढ जाती है।
- मृदा में वायु सचार घट (कम) जात्ता है, तथा सूक्ष्म रंद्रो की क्रियाशीलता भी कम हो जाती है।
- मृदा में H2s CH4, (मेथेन) तथा Co2 की मात्रा बढ़ जाती है।
- P की उपलब्धता बढ जाती है।
- जल भराव के प्रति सवेंदनशील फसल :- तिल, मक्का (मुख्यतः), तम्बाकु, दलहनी फसले आदि।
- जल भराव के प्रति प्रतिरोधी फसले :- धान
- कृषि जल निकास :- किसी क्षैत्र या स्थान पर 24 घण्टे मे अतिरिक्त जल बहार निकालने कि क्रिया को कृषि जल निकास कहा जाता है।
नालियाँ बनाकर :-
- हेरिंग बोन नालियाँ
- ग्रिडिरोन प्रणाली
- डबलरोन प्रणाली
- रोबीन नालियाँ
सिंचाई जल कि गुणवत्ता :-
विघ्रुत चालकता (EC) इकाई :- ds/m
- सिचाई जल तथा मृदा मे उपस्थित लवणों की सान्द्रता E.C मीटर से मापी जाती है।
- सामान्य सिचाई जल कि EC 15 या 15 से कम होनी चाहिए।
बोरोन सांद्रता (B) :- सिंचाई जल मे बोरोन की मात्रा 3 एश से कम अच्छी मानी जाती है।
SAR सोडियम अधिशोषण अनुपात :- खोजकर्ता – रिचर्ड
RSC (अवशोषित सोडियम कार्बोनेट) – खोजकर्ता :– एल्टन
ड्यूटी :- किसी सिचाई के स्त्रोत जैसे – नहर द्वारा एक निश्चित समय तक बहने से तैयार फसल का क्षैत्रफल ड्यूटी कहलाता है।
बेस :- फसल की प्रारम्भिक सिचाई से अन्तिम सिचाई के बीच की अवधि बेस कहलाती है
डेल्टा :- फसल कि बुआई से लेकर कटाई तक आवश्यक सिंचाई की कुल गहराई को डेल्टा कहा जाता है।
- सिचाई कि गहराई (cm और मीटर में मापी जाती है)
पलको :- फसल बुआई से पूर्व कि आने वाली सिंचाई को पलको कहा जाता है।
कोर :- फसल बुआई के बाद पौधो मे प्रथम सिचाई देने कि क्रिया को कोर कहा जाता है।
- जल का अधिकतम घनत्व 4 डिग्री C पर होता है।
- जल के अणु के 105 डिग्री का कोण बनता है।
- एक जल का अणु दूसरे जल के अणु से हाइड्रोजन बंध से जुडा होता है।
- फव्वारा विधि द्वारा जूट तथा धान कि फसल में सिचाई नहीं कर सकते है।
- सिचाई निर्धारण करने के लिए फसलों कि क्रान्तिक अवस्था उपयुक्त मानी जाती है।
- किसी मृदा में सिचाई के 2 से 3 दिन बाद (24 से 72 घण्टे) जल की मात्रा बचती हैं। उस जल कि मात्रा को क्षैत्र क्षमता कहा जाता है।
- जल का आयतन ज्ञात करना – लीटर अथवा घन मीटर
- V नोच -0.0138 H
पारशल फलूम :- द्वारा जल की मात्रा ज्ञात करना
ससंजन :- दो समान अणुओ के मिलने को या आकर्षण को ससजन कहा जाता है जैसे 2 जल के अणु
आसंजन :- दो असमान अणुओ के मिलने को या आकर्षण को आसजन कहा जाता है
- जैसे जल + मृदा अणु
मृदा मे जल ससजन व आसजन दोनो के कारण जल मृदा मे उपस्थित होता है।
पाइप में सिंचाई जल की मात्रा को :- वेन्चुरीमीटर से मापा जाता है।
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