खरपतवारों का प्रबन्धन एवं नियंत्रण Management and control of weeds

खरपतवारों का प्रबन्धन एवं नियंत्रण Management and control of weeds

(1) निरोधात्मक उपाय :- 

खरपतवार ग्रसित्त क्षेत्रो से नये क्षेत्रों में खरपतवारों के प्रकोप को रोकना निरोधात्मक उपाय कहलाता है। इसमे निम्न बातो का ध्यान दिया जाता है।
 
बीज नियम :- बीजों मे 01 % से अधिक अशुद्धियाँ नहीं होनी चाहिए।
बीजों में उपस्थित अशुद्धियो को डोकेज कहा जाता है।
 
पादप संघरोध तथा नियमों का पालन करना – 
  • सर्वप्रथम खरपतवार लेन्टाना केमरा को कर्नाटक मे खरपतवार घोषित किया गया।
  • कृषि यत्रों को साफ करके उपयोग करना।
  • मृदा का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण को रोकना।
  • सिचाई नालियो को खरपतवार रहित करके उपयोग करना।

नियंत्रण :- 

यांत्रिक अथवा भौतिक खरपतवार नियंत्रण – 
  • हलों से खरपतवारों को उखाड कर नष्ट करना।
  • निराई गुडाई करके (होविंग) -यह विधि भारत में मुख्यत’ प्रचलित है। (पुरानी व अच्छी विधि)
  • ग्रीष्म कालीन में गहरी जुताई करके – यह मुख्यतः मई-जून के माह मे की जाती है।
  • चैनिंग तथा ड्रेजिंग – यह विधि मुख्यतः जलीय खरपतवारो को नष्ट करने मे उपयोग की जाती है।
  • खरपतवारों को जलाकर – इस विधि में काम आने वाले फ्लेम थ्रोवर का तापमान 1000 ० C तक होता है।
  • जलप्लावन करके या जलमरकर – इस विधि से मुख्यत’ धान के खेत से खरपतवारों का नियत्रण किया जाता है।
  • मृदा सोलरीकरण – खोजकर्ता – यादुराज
  • इस विधि मे सामान्य तापमान से 5-10० C तापमान अधिक हो जाता है।
  • इस विधि में मुख्यत.सफेद पारदर्शी पॉलिथीन का उपयोग किया जाता है।
  • जिसकी मोटाई 25-50 माइक्रोन होती है।
 
        अपवाद – मोथा और सेंजी – इस विधि द्वारा इनका नियंत्रण नहीं होता।
 
  • मोवर – इस विधि में खरपतवारों को मोवर मशीन कि सहायता से खरपतवारों को या घासों को मृदा की सतह से काटा जाता है।
  • बहुवर्षीय खरपतवारों को उखाड़ कर नष्ट करना अच्छा माना जाता है।
 

कृषित नियन्त्रण – 

बीज दर तथा बुआई का समय तथा बुवाई की विधि द्वारा धान की सीधी बुआई के अन्तर्गत खरपतवारो का प्रकोप अधिक होता है।
1. कवर फसल (आच्छादित फसल) – अधिक वृद्धि तथा तेजी से मृदा को कवर करके खरपतवारो के प्रकोप को कम कर सकती है।
जैसे – चंवला, मूँग, मोठ, सोयाबीन, उडद आदि |
 
2. फसल चक्र – धान तथा गेंहू (धान-गेंहू) के फसल चक्र में गेंहू में गेहूसा खरपतवार का प्रकोप अधिक बढ जाता है।
जिसका नियत्रण बरसीम तथा जई की फसल उगाकर किया जा सकता है।
 
3. मिश्रित फसल तथा अन्तःशस्य फसल – जैसे बाजरा + मूँग
 
4. सिंचाई तथा सिंचाई के विधि द्वारा – बून्द-बून्द सिचाई विधि द्वारा खरपतवारो का प्रकोप सबसे कम होता है।
 
उर्वरक तथा उर्वरक देने कि विधि द्वारा – 
 
1. शस्य बीज शैय्या – यह मुख्यत रबी कि फसलों मे खरपतवार नियत्रण के लिए उपयोग किया जाता है।
इस विधि में मुख्यतः खरपतवारों को 1-2 बार नष्ट किया जाता है।
फसल तथा किस्मो का चयन करके खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है।
 
2. आत्मघाती अंकुरण द्वारा –स्ट्राईगा खरपतवार इथाइलीन के द्वारा अंकुरण करके नष्ट किया जा सकता है। इसे आत्मघाती अंकुरण कहा जाता है। स्ट्राइगा का नियत्रण स्ट्राईगोल के द्वारा भी किया जा सकता है जो कि कपास कि जडो से मिलता है।
 
3. मल्चिंग – फसलों के अवशेषो का मृदा के उपर कवर करके खरपतवारों का नियत्रण किया जा सकता है।
 

रासायनिक नियंत्रण –

वे रसायन जो खरपतवारों को नष्ट करने में उपयोग किये जाते है। उसे खरपतवार नाशी कहा जाता है।
 
हर्बीसाइड – लेटिन भाषा का शब्द है।
 
Herbicide – शाकनाशी
Weedicide — खरपतवारनाशी
विश्व में सर्वप्रथण खोजा गया खरपतवारनाशी 2, 4 -D है।
खोजकर्ता – हिचकोक तथा जिनरमेन (1942) (हार्मोन की खोज )
खरपतवारनाशी – मार्श और मिचेली (1944)
2, 4  -D खरपतवारनाशी का उपयोग फसलो में चौडी पतियों वाली खरपतवारो के नियत्रण के लिए उपयोग किया जाता है।

चयनात्मक के आधार पर खरपतवारनाशी का वर्गीकरण – 

 
1. अचयनात्मक खरपतवारनाशी – वे खरपतवारनाशी जो सम्पूर्ण वानस्पति (पौधे + खरपतवार) को नष्ट कर दे उसे अचयनात्मक खरपतवारनाशी कहा जाता है। ग्लाइफोसेट, डाईक्वॉट, पैराक्वाट
 
1. चयनात्मक खरपतवारनाशी – वे खरपतवारनाशी जो कि किसी विशेष प्रकार के पौधे को नष्ट करे उसे चयनात्मक खरपतवारनाशी कहा जाता है।
जैसे -2, 4, 0, एट्राजीन, सिमाजिन, आइसोप्रोट्यूरोन, एलाक्लोर आदि।
 

स्थानान्तरण के आधार पर खरपतवारनाशी का वर्गीकरण :- 

 
1. सम्पर्क खरपतवारनाशी – वे खरपतवारनाशी जो किसी पौधे के भाग के सम्पर्क मे आने पर उसे नष्ट कर दे उसे सम्पर्क शाकनाशी कहा जाता है।
जैसे -(D.P) डाइक्वाट, पैराक्वाट
2. स्थानान्तरित शाकनाशी – वे खरपतवारनाशी जो किसी पौधे के किसी भी भाग के सम्पर्क में आने के बाद सम्पूर्ण पौधे को नष्ट कर दे उसे स्थानान्तरित शाकनाशी कहा जाता है।
जैसे -2. 4-),एट्राजीन, सिमाजीन, आइसोप्रोट्यूरोन, ग्लाइफोसेट, पेन्डीमेथीलीन
 
इन खरपतवारनाशियो का उपयोग मुख्यत्तः बहुवर्षीय खरपतवारों को नष्ट करने मे उपयोग किया जाता है।
 

समय के आधार पर खरपतवारनाशियों का वर्गीकरण – 

1. बुवाई पूर्व  PPI (Pre Plant Incorporation) – इन खरपतवारनाशियो का उपयोग फसल की बुआई से पूर्व किया जाता है।
जैसे- फलुक्लोरेलिन ट्राईपलुरेलिन आदि ।
2. अंकुरण  पूर्व PE (Pre Emergence) – इन खरपतवारनाशियो का उपयोग बुवाई के बाद तथा फसलो के अंकुरण से पूर्व किया जाता है, उसका उपयोग बुआई के 1-2 दिन बाद करते हैं। जैसे – (शॉर्ट ट्रिक MA PAS) /मेट्रीब्युजीन, एट्राजिन, एलाक्लोर,सिमाजिन, पेन्डीमेथेलिन)
 
3. अंकुरण पश्चात POE  (Post Emergence) – इस खरपतवारनाशियों का उपयोग खड़ी फसल में या बुआई के बाद उपयोग किया
जाता है।
(शॉर्ट ट्रिक 2IP GDP)
  • G – ग्लाइफोसेट
  • D – डाईक्वाट
  • P -पैराक्वाट
  • 2 — 2,4D
  • I – आइसोप्रोट्यूरोन
  • P – प्रोपेनिल
 
ले-बाये एप्लीकेशन – 
गेहू कि फसल मे अन्तिम निराई-गुडाई के बाद 2,4 0 खरपतवारनाशी का प्रयोग किया जाता है|
 

जैविक नियंत्रण –

खरपतवारों को सूक्ष्म जीव व कीटो का उपयोग करके नियंत्रण करने कि विधियों को जैविक नियंत्रण कहा जाता है। जैविक नियंत्रण में काम आने वाले कीटों की मित्र कीट या बायोएजेन्ट कहा जाता है।
खरपतवारो को नष्ट करने के लिए जब कवको का उपयोग किया जाये उसे माइकोहर्बिसाइड कहा जाता है।
 
  • सर्वप्रथम जैविक निंयत्रण – लेन्टाना केमरा खरपतवार में 1902 मे हवाई (आइसलेण्ड )USA  में किया गया।
  •  स्टार्वेशन टेस्ट – यह टेस्ट मुख्यत’ मित्र कीटों के लिए किया जाता है।
  • लेन्टाना केमरा – यह भारत में 1809 में USAसे सजावटी पौधों के रूप मे लाया गया। यह सबसे पहला विदेशी खरपतवार भारत  मे आया जो कि सजावटी पौधे के रूप में उपयोग किया गया।
  • गाजर घास – इसे खरपतवारों का राजा या काग्रेस घास, मुसी पार्टी का खरपतवार कहा जाता है।
  • यह खरपतवार USA से 1956 में गेहू के बीजो को साथ आया।
  • जल कुम्भी – इसे फिशरमेन खरपतवार या बगाल का आतंक कहा जाता है।
  • बायोएन्जेन्ट    –                               खरपतवार का नाम 
  • क्रोसीडोसेमा लेन्टाना –           लेन्टाना केमरा एग्रोमाइजा लेन्टाना
  • जाझइग्रोग्रामा बाइकलोरेटा –             गाजर घास
  • निकोटियाना ब्रुची –                           जल कुन्भी
  • डेक्टाइलोपियस ओपेन्सी –                  नागफनी

जैव खरपतवारनाशी –

  1. डेवाइन – प्रथम जैव खरपतवारनाशी (फाइटोप्थोरा पॉल्मीवौरा) (सिद्रस फलो में )
  2. कोलेगो – मुख्यतः-धान की फसल मे (कोलेकोट्राईकम ग्लोइयोस्पोरोइड्स)
  3. बायोपोलेरिस – जोहनसन घास (बायोपोलेरिस सोरघीकोला)
  4. बायोमल – स्ट्रेप्टोमाइकस का उपयोग किया जाता है।

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