गेहूँ Wheat crop classification

गेहूँ Wheat

wheat

  • वानस्पतिक  नाम   –       ट्रिटीकम एस्टीवम
  • कुल                  –         ग्रेमिनी
  • उत्पत्ति स्थान    –         दक्षिण पश्चिम एशिया
  • गुणसूत्र             –         2n=42
  • पुष्पक्रम             –        स्पाइक / हेड
  • फल                   –        केरियोप्सिस
  • तना                   –        क्लम (Culm)
  • अंकुरण               –        हाइपोजियल
  • परागण               –        स्वपरागण
  • प्रोटीन                 –        12-14 %(खाद्यान फसलों में सर्वाधिक)
  • वसा -(तेल)           –        15 – 2 %
  • सभी खाद्यान फसलो मे तीन पुकेसर पाये जाते है।
  • अपवाद – धान मे 6 पुकेसर पाये जाते है।
  • गेहूँ की प्रोटीन को ग्लूटीन कहा जाता है। इसलिए गेहूँ का उपयोग बेकरी उत्पाद बनाने मे किया जाता है।

गेहूँ (Wheat) का वर्गीकरण –

1   ट्रिटीकम एस्टीवम /मैक्सिकन गेहूँ -29 – 42(हेक्साप्लोइड)

  •       भारत मे इसका क्षेत्रफल -87% (सर्वाधिक)
  •       इसका उपयोग चपाती बनाने मे किया जाता है।

2   ट्रिटिकम ड्युरम/मार्कोनी गेहूँ  —2n = 28 (टेट्राप्लोयड)

  • भारत मे इसका क्षेत्रफकल -12%
  • यह शुष्क क्षेत्रो के लिए उपयोगी माना जाता है।
  • इसका उपयोग सूजी -सेवी बनाने मे किया जाता है।

3   ट्रिटिकम डाइकोकम (इमर गेहूँ) -2015″28 (टेट्राप्लोयड)

  • भारत मे इसका क्षेत्रफल —1%
  • भारत मे इसकी खेती दक्षिणी क्षेत्र में की जाती है।
  • इसका उपयोग उपमा बनाने मे किया जाता है।

4. ट्रिटीकम मोनाकोकम -21-14 ( डिप्लोयड)

5. ट्रिटिकम स्फेरोकोकम – यह भारतीय बौना गेहूँ है।

गेहूँ (Wheat) जलवायु एवं मृदा –

  • रबी की फसल, C3 पादप, LDP पादप।
  • अंकुरण के लिए तापमान —0 – 25°C
  • परिपक्वता के लिए तापमान -23- 25°C
  • गेहूँ की बुआई समय से नही करने पर गेहूँ का उत्पादन कम हो जाता है, क्योकि परिपक्वता के समय तापमान बढ जाता है

जिससे पौधे समय से पूर्व परिपक्व हो जातें है और उत्पादन कम हो जाता है।

गेहूँ (Wheat) बीज दर बीज उपचार –

  • सामान्य    —100 kg/h
  • लवणीय मृदा तथा देर से बुवाई करने पर 120-125kg/h
  • देर से बुआई करने पर 20 से 25% अधिक बीजदर ली जाती हैं।

फसल अंतरण-

  • RxR                      —            20-225cm
  • बीज की गहराई          –             3-5cm
  • जैव उर्वरक                –             एजेटोबेक्टर
  • सिचाई प्रबन्धन        –               CRI (क्राउन कट इनिशिएशन) (21 दिन बाद 20-25 दिन बाद)
  • यदि एक सिचांई हो तो            –   CRI
  • यदि दो सिचांई हो तो.             –   CRI और लेट टिलरिंग (कल्ले बनते समय)
  • यदि तीन सिचांई हो               –    CRI बूटिंग अवस्था ओर दूधिया अवस्था
  • सामान्यतः 6 सिचाई देते है।

गेहूँ (Wheat) उर्वरक प्रबन्धन –

  • N  100-120 kg/h
  • P 40kp/h
  • K  30k g/h

आधा N + P, पुरा  K  — बैसल  डोज के रुप में (बुआई के समय)
आधा N – टोप ड्रेसिग के रुप में

खरपतवार प्रबन्धन –

  • गेहूँ का नकलची खरपतवार        – गेहूँसा
  • गेहूँ का आपत्तिजनक खरपतवार – हिरणखुरी

खरपतवारनाशी प्रबन्धन –

  • 2,4 —D(POE)                 –                   चोडी पत्ती वाले खरपतवार को नष्ट करने के लिए
  • मेटा सल्पयुरान (POE)       –                   चोडी पत्ती वाले खरपतवार को नष्ट करने के लिए
  • आइसो प्रोट्रॉन (POE)        —                   गेहूँसा के नियन्त्रण के लिए
  • सल्फोसल्पयुरॉन (POE)      –                   सकडी पत्ती वाले खरपतवार को नष्ट करने के लिए
  • पेन्डीमिथेलितल (PE)          –                   संकडी पत्ती वाले खरपतवार को नष्ट करने के लिए
  • अर्जुन (HD -2009) किस्म 2, 4-D  खरपतवारनाशी के प्रति सवेदनशील है।

गेहूँ -गेहूँसा मे अन्तर –

गेहूँ (Wheat) किस्में –

  • एक जीन डवार्फ (बोनी) किस्मै     –     लरमा रोजो, सुजाता, सोनालिका ।
  • डबल जीन डवार्फ किस्मै             –      HD -2009, खेरचीया – 65, छोटी लरमा, कल्याण सोना ।
  • ट्रिपल जीन डवार्फ किस्मै॑            –      हीरा, मोती, लाल बादशाह ।

अन्य किस्म –

HD2329, कल्याण सोना, राज  – 3774, राज – 3077, AH — 1, WH-147

भण्डारण –

  • खाद्यान फसलो का भण्डारण सामान्यतः 10 – 12% नमी पर किया जाता है।
  • गेहूँ के भण्डारण के लिए नमी -12%
  • उपज – उन्‍नतशील बोनी जातियाँ -50 – 60Q/ha
  • असिचित /देशी किस्म —15-20 Q/ha
  • धान के लिए भण्डारण -14%
    कीट –
    दीमक – (ओडेन्‍टोमर्स ऑबेसस)
  • इसका मुख्य भोजन सेल्युलोज होता है, जिसका पाचन ट्राइकोनिम्फा नामक सूक्ष्म जीव के कारण होता है जो दीमक की आत मेपाया जाता है।
  • दीमक का प्रकोप रेतीली मृदाओं तथा शुष्क क्षेत्रों में होता हैं।
  • पौधो की उम्र के साथ लिग्नीन की मात्रा बढती है। उदा दूसागवान

रोग –

1 रोली रोग (फँफूद जनित) – वायु जनित
i. काली रोली – पक्‍सीनिया ट्रिटिसाई
ii, पीली रोली – पक्‍सीनिया स्ट्रीपीफोरमीस
iii. . भूरी रोली — पक्सीनीया रिकोडीटा

  • भारतीय रोली रोग के जनक K.C मेहता

2 अनावृत कण्डवा रोग (लूज स्मट) आस्टीलागो ट्रिटिसाई (फँफूद) यह अन्त: बीजीय रोग होता है। 

3   ईयर कोंकल रोग     –   निमेटोड (अग्युना ट्रिटिसाई)
4    टुण्डु रोग               –    अग्युना ट्रिटसाई और क्लेवीबेक्टर (निमेटोड और बैक्टीरिया)

5. करनाल बंट              –    निवोसिया इण्डिका (फेंफूद)

  • खेत से सड़ी मछली जैसी दुर्गघ आती है।
  • दुर्गघ के लिए उतरदायी रसायन –ट्राइमिथाइल एमाइन
  • यह रोग गेहूँ की गुणवत्ता मे कमी लाता है।
  • आयात और निर्यात मे समस्या पैदा करता है।
  • इसकी खोज हरियाणा मे हुई।

हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करे – YOUTUBE

और भी पढ़े – 1 धान (Paddy/Rice) crop classification

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *