सरसों Mustard
वानस्पतिक नाम – ब्रेसिका स्पी
कुल – कुसीफेरी
उत्पत्ति स्थान – भारत
पुष्पक्रम – रेसिम
फल – सिलिकुआ
अकुरण – इपिजियल
परागण – स्वपरागण (पीली) भूरी (परपरागण)
तेल – 37 -49%
गुणसूत्र की सख्या -2n = 20,36
तेल:-
- सरसो -37%
- राई -45%
- तारामीरा -28%
- सिनिग्रीन -गध
- आइसोथायोसायनेट -तीखापन
- ग्लूकोसानेलेट -कडवाहट
- सरसो में अधिक मात्रा मे पाया जाने वाला अम्ल – इरूसिक अम्ल (37% – 57%) इसके कारण मनुष्य मे हृदय रोग होता है।
- कम इरूसिक अम्ल वाली किस्म – पूसा मस्टर्ड -30 (2%इरूसिक अम्ल) / PM -30
- सरसो की खली को लगातार खाने पर पशुओ मे गॉयटर रोग हो जाता है।
सरसो (रेपसीड) | ब्रेसिका केम्पेस्ट्रीस (पीली/भूरी) सरसो | टरनिप रेप |
राई (मस्टर्ड) | ब्रेसिका जुनसिया | इण्डियन मस्टर्ड,राई,राया,लाहा |
ब्रेसिका जुनसिया var.रूगोसा | पहाड़ी राई | |
ब्रेसिका नाइग्रा | कालीराई /बनारसी राई | |
तारामीरा | इरूका सेटाइवा | रोकेट क्रोप |
तोरीया | ब्रेसिका केम्पेस्ट्रीस | इण्डियन रेप |
सरसों Mustard में जलवायु और मृदा :-
- रबी की फसल C3 पादप,LDP पादप
- सरसों पाले के प्रति अति संवेदशील है, इसलिए गेहूँ ओर सरसों मिश्रित फसल बोई जाती है।
बीजदर -4 – 5 किग्रा /हैं (सामान्य)
- सिचित क्षेत्रों के लिए -2-2.5 किग्रा /है
- अन्तराल – 30-45x 10-I5cm
सरसों Mustard में खरपतवार प्रबन्धन :-
1 सरसों मे ओरोबंकी (ब्रुम रेप) परजीवी खरपतवार है।
- PPI – पलुक्लोरेलिन
- PE – पेन्डीमेथेलन
सरसों Mustard में उर्वरक प्रबन्धन :-
- SSP,अमोनियम सल्फेट, जैसे सल्फर युक्त उर्वरक का उपयोग करते है।
- खडी फसल में सल्फर की कमी होने पर 0.1% थायोयूरिया का पर्णीय छिड़काव करते है।
सरसों Mustard की किस्मे :-
- माया,वसुन्धरा, वरुणा, NRCHB -501
- भूरी सरसो – पूसा कल्याणी
- पीली सरसों – पूसा गोल्ड ,K-88 सबसे अधिक तेल – 49%
- तौरिया – T-9, भवानी
- तारामीरा – T- 27
सरसों Mustard के रोग और कीट :-
रोग –
1 डाउनी मिल्ड्यू रोग कारक – परनोर्पोरा पारासिटीका
2 सफेद रोली-
- फेंफूद – एल्ब्युगों केन्डिडा
3 चूर्ण आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) – रोग कारक – इरिसाइफी क्रूसिफेरस
नियन्त्रण – सल्फर युक्त कवकनाशी कैराथेन का उपयोग किया जाता है।
सरसों Mustard के कीट :-
- मोयला / चेपा – (लिपाफीस एराइसिमी)
- आरा मक्खी /मस्टर्ड सॉ-फ्लाई :-(एथालियाल्यूगेंस प्रोक्सिमा) शुरूआती अवस्था में सर्वाधिक नुकसान पहुँचाता है
- पेन्टेड बग – (बगराढा क्रूसीफेरम)
सरसों Mustard की किस्मे :-
- 1 Bio -902 (पूसा जय किसान) :-
- यह प्रथम जैव प्रोद्योगिकी द्वारा विकसित किस्म है। V.L.चौपडा द्वारा विकसित
प्रथम संकर किस्म – NRCHB-506 (सेवर, भरतपुर -2009)
तौरिया | टाइप – 9, टाइप – 36, संगम, भवानी, |
भूरी सरसो | भूसा कल्याणी, शुक्ला |
मस्टर्ड या राई | क्रांति, वरुणा, कृष्णा, रोहिणी, उषा बोल्ट |
तारामीरा | T-27 |
मस्टर्ड की प्रथम संकर किस्म | NRCHB-506, 501, (2009 में विकसित हुई) |
- अरण्डी के तेल मे पीलापन नहीं होता है। इसलिए इसका उपयोग पेंट और वॉर्निश के रूप में होता है।
- हवाई जहाज मे लुब्रिकेंट के रूप में उपयोग किया जाता है।
- अलसी का रेशा फप्लैक्स कहलाता है।
- अलसी को तिलहनी तथा रेशे की फसल के रूप मे उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग मुख्यतः शीतोष्ण देशो में रेशे की फसल के रूप में काम में लिया जाता है।
- उटैरा और पैरा फसल अलसी से सम्बन्धित है, जो छतीसगढ में मुख्यतः धान की फसल के बाद अलसी की खेती की जाती है।
- उटैरा -M.P. और U.P.
- पैरा – बिहार
- सूरजमुखी का पुष्प सूर्य की ओर गति करता है, जो अधिक ऑक्सीन के कारण होता है तथा इस प्रवत्ती को हेलियोट्रोपिज्म कहा जाता है ।
- सुरजमुखी और कुसुम मे PUFA (poly unsaurated fatty acid) की मात्रा तापमान बढ़ने के साथ घट जाती है।
- सुरजमुखी और कुसुम मे लिनोलेड्क अम्ल उपस्थित होने के कारण यह तैल कॉलेस्ट्रोल स्तर को कम करता है। इसलिए यह
- हृदय रोगी के लिए सबसे अच्छा तेल कुसुम तथा उसके बाद सुरजमुखी का
- उपयोगी माना जाता है। [कुसुम (78 %) > सुरजमुखी (68%)]
- लिनोलेइक अम्ल – हृदय रोगियो के लिए उपयुक्त होता है। क्योकि यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है।
- कुसुम > सुरजमुखी
- सभी तिलहनी फसलो का पुष्पक्रम – रेसीम
- तिलहनी फसलो में स्वपरागण होता है।
- अपवाद-सुरजमुखी और अरण्डी में पर परागण
- सुरजमुखी तथा कुसुम के पुष्पक्रम को केपीदुलम कहा जाता है।
सरसों Mustard की किस्मैं :-
- मूँगफली – AK-12, 24, चित्रा,चन्द्रा, GG-7, 2, M -13,ज्योति ।
- सरसों – भवानी T -27. T -9, माया, वसुन्धरा, NRCHB – 506, 501, पूसा गोल्ड, पूसा कल्याणी, bio- 902, वरूणा, लाहा – 101
- तिल — TC -25,120,127,RT -46.प्रताप (C-50),प्रभात।
- सुरजमुखी – मोर्डन, सुर्या, चन्द्रमुखी।कूसुम -भीमा -कॉटेरहित किस्म JSF -1,2,3
- अरण्डी – अरूणा।
- अलसी – त्रिवेणी चम्बल।
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